विलियम वॉकर एटकिंसन: विचार-प्रक्रिया के अनुदान-प्रदान (His Book review in Hindi)

उन्नीसवी सदी के दौरान, विलियम वॉकर एटकिंसन एक जानी-मानी हस्तियों  में से थे जिन्होंने नवीनतम विचार धारा का एक  नया दौर शुरू किया, जो आगे चलकर आधुनिक समाज के लोगों की सोच में एक नयी विचारधारा को उत्पन्न किया।

विलियम वॉकर एटकिंसन अपने समय के एक विख्यात वकील थे लेकिन कामयाब और धनवान बनने के जूनून में वो अक्सर चिंताग्रस्त रहते थे। आखिर एक दिन उनको इस शारीरिक, मानसिक एवं  आर्थिक चोट से गुज़रना ही पड़ा, जब उनको किसी कारण वश आर्थिक रूप से भारी नुकसान का सामना करना पड़ा।

वॉकर ने संकट के इस दौर में अपने आपको संभाला और यहीं से उनके जीवन की एक नयी कड़ी की शुरुआत हुई । वॉकर ने अपनी इस नयी ऊर्जा के ज़रिये अपने स्वास्थय और जीविका दोनों में इस तरह का सुधार किया जैसा उन्होंने पहले कभी नहीं किया। इसके साथ ही इन्होंने थेरॉन क्यू पोंट एवं योगी रामचरक जैसे कुछ कल्पित नामों के ज़रिये कई लेख भी लिखने शुरू किये। इनके द्वारा लिखी हुई बहुत सी ऐसी किताबें आज भी मशहूर हैं।

एटकिंसन ने आकर्षण के सिद्धांत को विचारशील अनुभव से समझाने की कोशिश की है । उनका कहना है की  जिस तरह हम किसी भी बाह्य वास्तु को छूकर महसूस करते हैं और उसकी तरफ आकर्षित होते हैं और उसकी ओर खींचें चले जाते हैं, उसी तरह हमारी मानसिक अवस्था भी इसी तरह से चीज़ों की तरफ आकर्षित हुआ करती है।

हमारी सोच से जो तरंगे उत्पन्न होती हैं उन्हें हम ऊर्जा का नाम दे सकते हैं। यह तरंगों रुपी ऊर्जा प्रकाश, ऊष्मा, आकर्षण शक्ति एवं विद्युत ऊर्जा के सामान ही वास्तविक है।फर्क बस इनकी गति में है। इसलिए विचारधारा से उत्पन्न हुई ऊर्जा को हमारे सभी पाँचों इन्द्रियाँ एक ही समय में महसूस नहीं कर पाती हैं।

एक बहुत ही बेहतरीन उदाहरण देते हुए एटकिंसन कहते हैं कि इस पृथ्वी पर जब कोई इंसान जन्म लेता है तो उसे खुद ज्ञात नहीं होता की उसका उद्देश्य क्या है और उसे क्या करना है। पर जब धीरे-धीरे उसकी सोच और समझ बढ़ती है तो उसको अनुभव प्राप्त होने लगता हैं और अपने इन अनुभवों के आधार पर वो अपनी ज़िन्दगी को बनाता- बिगाड़ता रहता है। कुदरत से इंसान को विश्वास रुपी ऐसी शक्ति मिली हुई है जिसकी मदद से वो अपने विचारों को यथार्थ बना सकता है यानि की जो वो सोचता है, उसे पूरा कर सकने की क्षमता रखता है।
                                                                                                                                      
हमारी सोच पर ही हमारी क्रियाएं निर्भर करती है। अगर हम चिंताग्रस्त हैं तो हमारी क्रियाएं भी वैसी ही होंगी। अगर हम अच्छे एवं उज्जवल विचारों को अपने अंदर उत्पन्न करते हैं तो हमारे अंदर की ऊर्जा हमारे उन विचारों के माध्यम से वैसा ही माहौल बनाने लगती हैं।

हम अकसर इस बात पर राज़ी नहीं होते कि जो भी हम देखते हैं, अनुभव करते हैं और जिस तरह का जीवन व्यतीत करते हैं, वो हमारी सोच पर निर्भर करता है और यही सोच हमारे खुद के जीवन को और दूसरों के जीवन को प्रभावित भी करता है।

लेखक यह समझाने की कोशिश कर रहा है कि हमारे अंदर की इच्छा-शक्ति पहले से ही प्रबल हुआ करती है, पर हमे अपने मन को यह सीखाने की ज़रुरत नहीं कि उसे क्या ग्रहण करना है और किस सन्देश पर क्या करना है।

हमारे आस-पास लगातार नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जा के तरंगें एक जगह से दूसरी जगह घूमती रहती हैं। यह हमारे ऊपर है की हम किस तरह की तरंगों को अपने अंदर समाहित करते हैं और अपने सोच और कार्यों को उसी के अनुसार ढालते हैं। सकारात्मक तरंगें हमारी ऊर्जा को और बढ़ाती हैं, हमारे वातावरण को स्वस्थ रखती हैं और आगे विकसित करने में मदद करती हैं। नकारात्मक सोच विकास की क्रिया में बाधा उत्पन्न करती है।

एटकिंसन ने सकारात्मक सोच की महत्वता को बताते हुए इसके दो फायदे बताये हैं : पहला फायदा यह कि इससे हमारी मानसिक सोच में वृद्धि होती है। यानि हमारे अंदर ऊर्जा का विकास होता है और हम खुद को जीवन के आगे के कार्यों में महत्वपूर्ण निर्णय लेने में कामयाब हो सकते हैं। सकारात्मकता का दूसरा फायदा यह है कि हम अपने मानसिक संतुलन को बनाये रखने में कामयाब हो सकते है जिससे वक्त आने पर हम गलत और सही फैसलों का चुनाव खुद कर सकें।

हमारे अंदर ही हर तरह की ऊर्जा का भण्डार व्याप्त है। अगर इस ऊर्जा को हम सही दिशा में ले जाएंगे तो स्वस्थ ऊर्जा का फैलाव हर तरफ होगा। हमे खुद को हर पल इस तरह से तैयार करने की कोशिश करनी चाहिए जिससे हम अपने मार्ग पर निरंतर अग्रसर होते जाएँ। कहीं भी ठहराव मिले तो खुद पर नियंत्रण करने की काबिलियत हमारे अंदर होनी चाहिए।

जब हम सिर्फ अपने लिए सोचते हैं, करते हैं या करवाते हैं तो यह अहम् का सन्देश देती है। अंग्रेजी भाषा में इसे हम 'आई' कहते हैं यानि 'मैं' और  'मेरा' ..... और ' I ' का उपकरण 'इच्छा-शक्ति' है .....यानि 'Will'.... अगर हमारे अंदर अहम् है तो हमारी इच्छा शक्ति भी उसी तरफ कार्य करेगी।
                                                                
एटकिंसन ने बताया है कि  किस तरह हम सकारात्मक सोच रखते हुए भय, चिंता, द्वेष, रोष और घृणा पर काबू पा सकते हैं।लेखक को लौकिक सिद्धांतों पर पूर्ण भरोसा है और वो सभी को इन सिद्धांतों पर अमल करने के लिए प्रेरित करता है कि चाहे जैसी भी परिस्थिति हो जो सिद्धांत परमेश्वर या कानून ने बनाये हैं उनका हमेशा पालन करना चाहिए।

एक शानदार उदाहरण देते हुए एटकिंसन कहते हैं कि इस पृथ्वी पर ऐसा कुछ नहीं जो हम प्राप्त नहीं कर सकते या हमे प्राप्त नहीं हो सके। ये हमारे अंदर की इच्छा शक्ति होनी चाहिए कि खुद पर कितना विश्वास है।

इस संसार में कोई भी चीज़ स्थायी नहीं है। चलती रहती है। परमात्मा ने संसार में जो भी चीज़ें हमारे लिए भेजी हैं उनपर हम सभी प्राणियों का हक़ है।हर प्राणी अपनी मेहनत, काबिलियत और अच्छे विचारों द्वारा उन संसाधनों को प्राप्त की कोशिश करता रहता है। जिसने अपने मन की ऊर्जा को सही तरीके से सही जगह लगाया, उसे ही वो संसाधन व्याप्त हुआ।

हालांकि ये लेख दशकों पहले लिखी गयी थी पर इसके अंदर व्यक्त सभी उदाहरण आज भी हमारे जीवन में महत्व रखते हैं।

लेखक ने अपने पाठकों को हमेशा सकारात्मक सोच रखने पर ज़ोर दिया है। लेखक ने स्वस्थ और शुद्ध आचार - विचार का निर्वाह काने के लिए पाठकों को लगातार प्रेरित किया है।

अध्याय १: मनुष्य की विचारधारा में आकर्षण के सिद्धांत की विशिष्टता

  • आकर्षण के सिद्धांत के अनुसार हमारे विचार ऊर्जा की एक अभिव्यक्ति हैं। यानि जिस तरह की ऊर्जा हम अपने अंदर महसूस करते हैं , उसी तरह का विचार भी हमारे मन में उत्पन्न होता है।
  • प्रकाश और ताप से निकली ऊर्जा में सिर्फ उनकी गति का फर्क होता है। अर्थात ये दोनों ही ऊर्जा एक सामान होती हैं क्योंकि ऊर्जा का हनन कभी भी नहीं होता। वह सिर्फ एक जगह से दूसरे जगह प्रवाह करती हैं।
  • मनुष्य की बुद्धि सिर्फ विचारों द्वारा उत्पन्न तरंगों को महसूस करती हैं क्योंकि यह प्रयोग द्वारा भी सिद्ध किया जा चूका है । 
  • आतंरिक मन की वायरलेस टेलीग्राफी के अनुसार आप जीवन में जो भी देते हैं, वही आपको मिलता भी है |
           
अध्याय २ : विचार-धारा रुपी तरंगें और पुनरुत्पादक (Reproduction) की शक्ति

  • हमारे मनो-विचार से निकली हुई तरंगे एक मन रुपी सागर में अठखेलियाँ करती हुई डुबकी लगाती रहती है। ये तरंगें एक रूप से दूसरे में परिवर्तित होने की शक्ति रखती हैं और मनुष्य के जीवन को प्रभावित करती रहती हैं ।
  • कुछ ऐसी तरंगें भी होती हैं जो हमारे जीवन पर किसी तरह का असर नहीं डालती हैं क्योंकि जब हमारी बुद्धि पूर्ण रूप से विकसित हो जाती है तब हमे एहसास होने लगता है कि इस पृथ्वी पर हमारे जन्म लेने का औचित्य क्या है ?
  • दूसरों की सोच भी हमारे जीवन पर असर करती रहती है और समय-समय पर प्रभावित भी करती रहती है। आय-दिन जब हमारी मुलाकात दूसरों से होती रहती है तो उसका असर हमारी सोच पर पड़ता है। किसी-किसी के विचारों से हम इतने प्रभावित हो जाते हैं की हम खुद को वैसा ही ढ़ालने लगते हैं।
  • हमारा मन विभिन्न तरह की पिच (Pitch) यानि ढाल से बना हुआ है......कुछ ढाल सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करती हैं....... तो कुछ नकारात्मक ऊर्जा को.... हम किसी  के लिए सकारात्मक सोच रखते हैं और किसी किसी के लिए नकारात्मक सोच....
  • जो व्यक्ति मानसिक-क्रियाओं के नियम को समझने लगता है, उसके अंदर ये क्षमता विकसित हो जाती है कि वह अपने अंदर के नकारात्मक सोच को सकारात्मक सोच में बदल सकता है। मनुष्य अपने विचारों का आंकलन खुद ही कर सकता है कि कब उसमे नकारात्मक सोच उत्पन्न हो रही है और कब सकारात्मक ।
  • अगर वो ठान ले की वो खुद को हर तरह की परिस्थिति में संभाल सकता है तो ऐसा करने की क्षमता भी रखता है। अपने आतंरिक मन में सही ऊर्जा के विकास के द्वारा वो कुछ  भी  कर  सकता है।                                         
अध्याय ३ : हमारा मन

  • भगवान ने हम मनुष्यों को एक ही मन प्रदान किया है जो ज़्यादातर दूसरों के विचारों के अनुसार ही चलता है । उस पर दूसरों के जीवन में हो रही घटनाओं का ज़्यादा असर दीखता है। इसे पैसिव प्रवृति कहते है । पर अब इस नए युग में एक्टिव प्रवृत्ति को स्वीकृति ज़्यादा मिल रही है।
  • एक्टिव प्रवृति कुछ नया करने की सोच रखती है, वही पैसिव प्रवृत्ति दूसरों के आदेश का पालन करने की तरफ केंद्रित रहती है।
  • एक्टिव प्रवृति हमेशा आगे बढ़ने और प्रयासरत रहने से परिपूर्ण तरंगों को वातावरण में प्रवाहित करती हैं, वही पैसिव तरंगें खुद को एक जगह ही समाहित की रहती हैं।
  • मानसिक विकास (Mental Development ) और मानसिक सुधार (Mental Cultivation) दोनों ही विभिन्न शब्दावलियाँ हैं | यह बहुत ज़रूरी है की हमारा मन खुद को सही दिशा में विकसित करके सुधार लाने के लिए प्रयासरत रहे।
  • हमारी इच्छा शक्ति पर ही निर्भर करता है कि कितनी ऊंचाई तक काम करने की क्षमता रखते हैं। और विश्व को दिखा सकते हैं हममें वो काबिलियत है की हम दुनिया को किस तरह अपनी मुट्ठी में कर सकते हैं....चैंपियन बन सकते हैं । एक्टिव और पैसिव प्रवृति तो सिर्फ माध्यम के रूप हैं ।

अध्याय ४ : मानसिक निर्माण

  • अचेतावस्था में होते हुए भी अगर कोई मनुष्य अपने मानसिक संतुलन को बनाये रखता है तो उसकी असली शक्ति है। '' यानि मैं मनुष्य को सर्वप्रिय है, अर्थात मनुष्य हमेशा खुद के लिए सदैव विचारशील है......अपने लिए सोचना, करना और बढ़ना......
  • ऊँचे आकाश को छूते वक़्त भी खुद को धरा पर रखना......यह अपने आप में श्रेष्ठता है और इसलिए ये हमारा कर्त्तव्य भी है की हम अपने मन को किसी भी गैर ज़िम्मेदार शक्ति द्वारा नियंत्रित न होने दें।
  • स्व-चेतन द्वारा हम अपने आपको वास्तविक रूप ( Real Self ) में बनाये रखने में कामयाब हो सकते हैं। यह तभी संभव है जब हम अपनी सकारात्मक ऊर्जा को सदैव बनाये रखें ।
                                                                                                                   
अध्याय ५: इच्छा शक्ति के रहस्य

  • मनुष्य की इच्छा शक्ति में वो सभी  सामग्री उपलब्ध हैं जिनकी अकसर ज़रूरत हुआ करती है जैसे :  खुद को विकसित करने की शक्तिअनुशासन-बद्धता, नियंत्रण और निर्देश देने की शक्ति|
  • हर मनुष्य के अंदर अपनी एक दृढ़ इच्छा शक्ति होती है जिससे खुद को इस संसार में विकसित कर सकता है ।
  • मनुष्य को अपने इच्छा शक्ति को कुछ भी सीखाने की ज़रूरत नहीं होती, पर अपने मन को उसे पूरी तरह से नियंत्रित करने की आवश्यकता ज़रूर है क्योंकि मन चंचल होता है।
  • मनुष्य को कभी भी आलस नहीं करना चाहिए क्योंकि आलस करने पर उसने जो चाहा होता है, वह रुक सा जाता है। एक दृढ़ इच्छा शक्ति ही सभी किये संकल्पों को पूरा कर सकती है।
अध्याय : हानिकारक विचारों से बचाव

  • सबसे पहले हमें भयभीत नहीं होना चाहिए । भय न होने से हम अपने कार्य को ठीक ढंग से कर सकते हैं।
  • जो मनुष्य भयभीत होते हैं, उन्हें उन तरीकों के बारे में ज्ञात होना चाहिए कि कैसे अपने भय को वो दूर कर सके।
  • मनुष्य के अंदर स्वस्थ विचारों वाली ऊर्जा होनी चाहिए, जो आस-पास के वातावरण को भी उन्ही तरंगों में विकसित करती है।
अध्याय  : नकारात्मक विचारों में परिवर्तन

  • चिंतित, भय का एक छोटा रूप है जो आगे चलकर मनुष्य को हर परिस्थिति में भयभीत करने पर मजबूर करता है।                                                                                                         
  • यह मानी हुई बात है कि मनुष्य की इच्छाएं चिंता को जन्म देती हैं जो नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित होती हैं और जो आगे चलकर मृत्यु के नज़दीक लाकर खड़ा कर देती हैं।
  • परिवर्तन का अर्थ यहाँ पर ये कहना है कि मनुष्य सकारात्मक ऊर्जा को अपने अंदर विकसित करके, किस तरह अपने जीवन में सुधार ला सकता है|
  • भयभीत होने से हमारे अंदर जिस भी तरह के जितने प्रकार की इच्छाएं हैं वो मारने लगती हैं। इसलिए बेहतर यही रहेगा कि खुद को सही ऊर्जा की तरफ लेकर जाएँ और सदा उसी ओर प्रयासरत रहें क्योंकि एक बार जब आप इस तरीके को अपना लेंगे तो अपने आप ही ये क्रियाएं आपके जीवन में होने लगेंगी और आप चिंतित होना छोड़ देंगे।
  • मनुष्य के पास कई तरह के तरीके हैं जिनसे वो अपने अंदर के भय और चिंता को दूर कर सकता है जैसे खुद की इच्छा शक्ति को मजबूत किये रहना, हमेशा सार्थक रहना, हमेशा सार्थक राह पर चलने  की कोशिश करना इत्यादि ।
अध्याय  : अपने मन को नियंत्रित करने का नियम

  • हमारे विचार या तो एक ईमानदार सेवक की तरह काम करता है या अत्याचारी शाषक की तरह काम करता है।
  • कभी-कभी जब हम शांत अवस्था में होते हैं, तो हमारे सोचने का अंदाज़ भी अनोखा होता है। इसलिए जो लोग अपने मन को नियंत्रित करने में कुशल होते हैं वो अपने कार्यों को बिना किसी चिंता के सफलतापूर्वक कर लिया करते हैं।
अध्याय : प्राण शक्ति पर अधिकार जताना
  • मनुष्य को खुद को समझने की ज़रुरत है। उसे निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए की वो क्या कर सकता है। अपने सुदृढ़ विचारों द्वारा वो दुनिया के किसी भी मुकाम को हासिल कर सकता है। बस उसका सही प्रयास और सुविचार उसके साथ होना चाहिए।                                                          
अध्याय १० : अपने अंतर्मन की आदतों में सुधार

  • जब हमारा मन अचेतन अवस्था में होता है तो उसे हमको निरंतर यह समझाते रहना चाहिए कि किस तरह से हम अपने अंदर के सकारात्मक ऊर्जा के द्वारा खुद को और समाज को विकसित कर सकते हैं।हमेशा अच्छी आदतों को सीखने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।
अध्याय ११ : भावनाओं का मनोविज्ञान

  • हमारे अंतर्मन की भावना निरंतर परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती हैं। वो कभी दबाव की अवस्था में होती हैं तो कभी विकास की अवस्था में। और यह हम पर निर्भर करता है की हम अपनी आदतों में किस तरह से सुधार कर सकें जिससे हमारे जीवन में हर पल सुगमता का आगमन हो सके।
  • मनुष्य के लिए कुछ भी कठिन नहीं है। वह चाहे तो अपने अंदर की हर उस नकारात्मक ऊर्जा को कम करने की काबिलियत रखता है जो उसे आगे बढ़ने से रोकती हैं।
अध्याय ११ : मस्तिष्क की नयी कोशिकाओं का विकास

  • हमे यह जानना ज़रूरी है कि भावनाएं हमारे अंदर जन्म लेती हैं न की वो हमें जन्म देती हैं। पर अकसर यह देखा जाता है की लोग अपनी भावनाओं से ही नियंत्रित होने लगते हैं यानि जिस तरह की भावना पनपती है वैसा ही कार्य मनुष्य करता है।
  • मनुष्य ही भावनाओं का दाता है और उसके अंदर ही ये शक्ति है की वो अपनी मस्तिष्क की नयी कोशिकाओं को विकसित करने में कामयाब हो सके।
  • मनुष्य का दिमाग एक साधन की तरह है जो निरंतर उसके सोचने और विचारने की शक्ति को प्रभावित करता रहता है।
  • मनुष्य का दिमाग उन सभी नकारात्मक ऊर्जाओं से उसका बचाव करता है जिससे उसको नुकसान पहुँच सके ।
अध्याय १२ : स्वस्थ इच्छाओं को आकर्षित करने की शक्ति

  • एक स्वस्थ और सकारात्मक विचार कई नकारात्मक विचारों पर हावी होने की शक्ति रखता है। किसी भी वस्तु को पानी की कामना हेतु हमें उसको दिल से पाने की इच्छा रखनी चाहिए और ऐसा सोचना चाहिए की वो वस्तु इस संसार में मौजूद है।
  • पर यह ध्यान रखना ज़रूरी है उस वास्तु की चाहत इस कदर न बढ़े की हमे अपनी ज़िम्मेदारियों का अहसास न हो सके। 
अध्याय १३ : गतिशीलता का आगाज़

  • एक कामयाब और मजबूत इरादों वाले मनुष्य में और  नाकामयाब और कमज़ोर इरादे वाले मनुष्य में सोचने के तरीके में फर्क होता है, हर परिस्थिति में खुद पर विश्वास करने की क्षमता पर फर्क होता है।
  • एक दृढ़ इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति हमेशा गतिशील रहता है, प्रयासरत रहता है। किसी भी कार्य को करने के लिए उनके  अंदर पूर्ण विश्वास होता है। 
अध्याय : जो तुम्हारा है उसको पाने के लिए हर पल के लिए प्रयासरत रहो

  • मनुष्य की प्रबल इच्छाएं ही उसको उसकी मंज़िल  की ओर ले जाती हैं बस उसको अपने इरादे मजबूत रखने चाहिए ताकि वो पाने की इच्छा हर पल रख सके। जो पाने की इच्छा रखता है, उसे ही च्चेज़ें मिलती भी हैं ।
  • जब इच्छा प्रबल होगी तो सांसारिक शक्तियां भी उसे देने में मदद करने लगती हैं।मनुष्य को सिर्फ अपने अंदर उस विश्वास को जगाये रखना है जिससे वो अपनी मंज़िल को पा सके ।
अध्याय : यह नियम है..... मौका नहीं


  • विचारों से निकली ऊर्जा और उससे निकली तरंगें एक दूसरे को आकर्षित रहती हैं। एक मजबूत इरादे में नामुमकिन को मुमकिन करने की शक्ति होती है। अगर पाने की इच्छा प्रबल है तो मनुष्य अपने सपनों को पूरा करने की शक्ति रखता है और यदि नहीं तो उसे हार का सामना करना पड़ता है। यही प्रकृति का नियम है कि जो प्रबल है वही जीतेगा।

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